मनुष्य हो या अन्य कोई जीव सभी का जीवन भोजन पर आधारित रहता है। यह अलग बात है कि अन्य जीव अपनी देह के अनुकूल भोजन ग्रहण करते हैं और अन्य प्रकार की वस्तु वह ग्रहण नहीं करते जिससे उनकी देह को हानि पहुंचे। इसके विपरीत मनुष्य जिसकी बुद्धि अन्य जीवों से अधिक तीक्ष्ण है वह भोजन के प्रति लापरवाह तो रहता ही है स्वाद के लिये ऐसी वस्तुऐं भी ग्रहण करता है जो शरीर के लिये अत्यंत हानिकारक है। प्रकृति ने मनुष्य के लिये अनेक प्रकार की वस्तुओं का निर्माण किया है पर वह मांसाहार करता है। अनेक लोगों को यह समझाना कठिन काम है कि मांस में मूलतः कोई स्वाद नहीं होता बल्कि नमक, मिर्च तथा अन्य मसालों का प्रयोग उसे खाने योग्य बनाता है। चाणक्य नीति में कहा गया है कि मांस से दस गुना अधिक शक्ति घी में है पर प्रचार यही किया जाता है कि मांस खाने से मनुष्य में अधिक शक्ति आती है। जबकि सच यह है कि मांस मनुष्य के लिये अपच भोजन है।
भोजन के विषय में वेदांत दर्शन की मान्यता है कि
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सर्वानन्नुमतिश्च प्राणात्ययेतद्दर्शनात्।।
"अन्न बिना प्राण न रहने की आशंका होने पर ही सब प्रकार के अन्न भक्षण करने की अनुमति है।"
आबधाच्च
"वैसे आपातकाल में भी आचार का त्याग नहीं करना चाहिए।"
शब्दश्चातोऽकामकारे।।
"इच्छानुसार अभक्ष्य भोजन करना निषेध ही है।"
इसके अलावा माया के खेल में फंसे अनेक लोग तो भोजन को दूसरी प्राथमिकता देते हैं जो कि उनकी उस देह का आधार है जो संघर्ष के दौर में साथ निभाती है। आजकल फास्ट फूड का सेवन बढ़ रहा है और उसके साथ समाज में बीमारियां भी पांव फैला रही हैं। भोजन के प्रति चेतना न रहना मनुष्य को एक तरह से पशु बनाये दे रही है। अगर अपने पास समय न हो या वस्तु उपलब्ध न दिखे तब तो पेट भरने के लिये कभी कभार ऐसा भोजन ले लिया तो कोई बात नहीं जिससे कि शरीर को अधिक लाभ नहीं मिलता पर हमेशा ही उसका प्रयोग शरीर को उम्र से पहले बूढ़ा बना देता है। अतः जहां तक हो सके शाकाहारी तथा उपयुक्त भोजना करना चाहिए।