माँ को मैने जीते देखा

हिन्दी कोना - Friday, December 2, 2011 1:04:39 PM



माँ को मैने जीते देखा


आँचल के एक में
हैं चाँद-तारे कई
एक ने समेट रखा है
देह के टुकड़े को !!

फक्क पड़े हैं चेहरे
नीर चल रहे हैं आँखों से
अनवरत!
दोनो की है वेदना
सहअस्त्रों योजन से लंबी
कैसे बचाए अपने -अपने लाड़लों को
अपने आँचल को सहेजती!
देखती वो जर्जर हो चुके वस्त्र
एक पे इमारतों के जंगल
एक ने झेला है यतनाओ
के अनगिनत बान !

कल को एक ने सुर्य फैलाया
तो आज खुद जल रही है
एक ने जन्म दिया मनु को
तो दुनिया उसे छल रही है!
चोटिल है वो, बोझिल है वो
सहारा नही बस अब
ना नारायण है यहाँ ना केशव
बस दर्द है संत्रास है अब!!

वो कहती भी तो नही कुछ
क्या उसे उसी से कष्ट है
जिसको भींच रखा है उसने?
क्यों कभी वो उसे देखती है
और कभी आँखें मूंद कर रोती है,
हाँ शायद है कुछ ऐसा ही
पर वो कहती भी तो नही कुछ!

अपने इस असमंजस में
सजल आँखों से मैंने
दोनो माँ को जलते देखा!
बेबस और लाचार सही
इस पर भी मैने,
माँ को जीते देखा!!

               राहुल सिंघ
               rahulsisodaya@gmail.com
               +91 9711062789





2024 DelhiHelp

Comments

3:38PM 1/11/12 parul पापा- बेटा, अमेरिका में 15 साल के बच्चे भी अपने पैरों पर खडे़ हो जाते हैं। बेटा- लेकिन पापा भारत में तो एक साल का बच्चा भागने भी लगता है !!


1