कौन सा मुल्क

हिन्दी कोना - Thursday, June 9, 2011 10:21:38 AM



कौन सा मुल्क...
कौन सा मुल्क है ये
यूँ तो हर कोई अटा है, यहाँ
सरहदों में बटा है यहाँ
पर मैं ज्यों पूछता हूँ तो,
यों पेशानियों पे बल क्यूँ पड़ते है?

मछुए रोज सुबह जाल डालते हैं
कुछ मधुर कलरव भी होते हैं
पर फिर वही नीरस सा शोर-शराबा
धड़ -धड़, खट्ट-खट्ट, जूम-तड़क
ये एक जगह नही वरन
हर ओर का अभिमान है
बस यह समझ नही आता कि,
कहीं यह हम मानव को मिला
अभिजात्य अभिशाप तो नही!
कुछ कहते हैं, मुल्क को धर्म
कुछ रौणदते हैं, मुल्क के मर्म
कुछ तौलते हैं,मुल्क के गलिचे
कुछ तोड़ते हैं, मुल्क के साँचे
कुछ बैठे हैं, गद्दियों में
और भर रहे हैं मुक्कदर के खाँचे!
ये कौन सा मुल्क.....

एक मुल्क का ही ले लो,
कोई तो समीकरण बचे जो
मुल्क को मुल्क छोड़ दे!
बस मुखौतों में ठहाके हैं अभी
मुल्क से विश्व जोड़ दिया हमने,
पर विश्व एक हुआ नही!
वो भी सोचता होगा उपर बैठा कि,
क्या किस्मत है तेरी, मुल्क है
रुग्ण हो सिसक रहा, मुल्क है
बेड़ियों में लिपट रहा, मुल्क है!
जब लड़ते हो दो होकर आपस में,
धुओं में खाँसता मुल्क है!
क्या सदियों की प्रचंड विभीषिका
क्या तुझे याद नही दिलाती,
अब और कितना तार-तार करोगे
मेरे ही दामन को!
सिक्के की खन-खन का
सिक्का-ए-स्तान छोड़ दो बनाना
और बस रहने दो मुल्क को मुल्क
विश्व एक हो ना हो,
बस बचा रहे बना रहे हर मुल्क
मैं इन्ही में ढूँढ लूँगा अपना मुल्क!!



2024 DelhiHelp

Comments