कैसे हो किससे हो...

हिन्दी कोना - Friday, August 26, 2011 7:45:13 AM



कैसे हो  किससे हो...

सनसना उठे हैं जिस्म जैसे
बिन्ध रही हो वेदना
जैसे हो रही हो कशमकश
दो तीर से एक नदी हो भेदना!

कैसे और किससे हो
रूबरू लज्जा की निगाहें
आँतों में हो रही जलन
यू ही नज़र झुक जायें!


हमने इन दशकों में जैसे,
पुरखों के सहअस्त्रों युग बिताए
पर हो ना सके एकाग्र
कौन क्या कहना चाहे!

आधे अंधों की हन्क्ते
आधे औरों की बाँचते
जो रह गये वो
रह गए धरा को ताकते!

बस लज्जा जनक क्या है
ए दुनिया की अभी तक,
हमने अपनी मंशाओं के
झरोखों को बंद रखा है!

ज़रा सा धूप क्या लगेगी
ये सेमा सा अध्गला
बीज फिर एक पुष्ट
वृक्ष जान पड़ेगा
और तुम्हारी ही किसी
सोच की साखों में
तुम्हें ही रहने को कॉटर देगा!!



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Comments

3:52PM 10/4/13 Aryan kumar i can't stay without write .after this read to thanks write this poem.


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